kanchan singla

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प्रेम के पन्ने

एक प्यार का पन्ना लिखा हमनें
बन गया पूरी किताब
लिखते-लिखते प्रेम को
मैं बन गई मीरा सा ख्वाब
गंगा का पवित्र जल हथेली पर लिए
लिखा प्रेम हमनें बूंद-बूंद सा
छप गया मुझमें कहीं यह प्रेम
एक पुस्तक की तरह
अनंत वर्षों के लिए अमिट सा
अब ना मिट सकेगा इसका कोई अक्षर
स्याही ने जड़ लिया है खुद को इन पन्नों पर
लिखते-लिखते सारे पन्ने जुड़ गए हैं इस कदर
कोई चाहे करना गर इन्हें विभक्त या क्षतिग्रस्त
रह जाएगा उसका यह ख्वाब अधूरा सा
जब प्रेम होगा मुकम्मल सा
एक राधा सा और हो दूजा मीरा सा
निश्चल और सचल सा
गंगा के निर्मल जल की तरह पावन और पवित्र सा
डूब जाएगा खुद में ही या कह जाएगा
एक ऐसी दास्तां
जिसके सजदे में झुकेंगे अनगिनत सर
आंखों के कोरों पर बूंद सा प्रेम कहीं छलक जाएगा
पढ़कर प्रेम के सच्चे अर्थों की दास्तां ।।

यही एक प्रेम भरा पन्ना लिखना चाहा
लिखते-लिखते फिर भी रह गया अधूरा सा
कहीं प्रेम में सती बनकर भस्म हुआ
कहीं सबरी के झूठे बेरों में घुलकर मीठा हुआ
कहीं राधा का इंतजार हुआ
कहीं मीरा की तरह समा गया प्रेम में ही
कुछ इसी तरह यह प्रेम कहीं
अधूरा हुआ कहीं मुकम्मल हुआ
पकड़ कर मेरी कलम को
मेरे इन पन्नों का हिस्सा हुआ
लिखकर मैंने लफ़्ज़ों को
पिरों दिया शब्दों में
शब्द जाल में जुड़ते-जुड़ते
प्रेम के पन्नों को भरते-भरते
आखिर में यह बन गया एक पूरी किताब ।।

- कंचन सिंगला ©®

लेखनी प्रतियोगिता -23-Nov-2022


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3 Comments

Abhinav ji

24-Nov-2022 09:28 AM

Very nice👍

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बहुत खूब

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Sushi saxena

23-Nov-2022 06:12 PM

Nice

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